निधि द्विवेदी। अभिव्यंजना
कितनी अजीब बात है ना इस समाज के चौराहे पर खड़े होकर तुम दे सकते हो किसी को गाली व्यक्त कर सकते हो घृणा अकड़ सकते हो गर्व से फोड़ कर किसी का माथा पर नहीं रेंग सकते सम्मान से अपने प्रेमी का हाथ पकड़ कर! क्या तुम्हें नहीं लगता, अपने मुख पर सभ्यता का घूँघट लिए तुम्हारा समाज नंगा है? निधि द्विवेदी
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