खोज
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]खोज संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ खोजना]
१. अनुसंधान । तलाश । शोध । क्रि॰ प्र॰—करना ।—लगाना ।—होना । मुहा॰—खोज खबर लेना = हालचाल जानना ।
२. चिह्न । निशान । पता । उ॰—(क) रथ कर खोज कतहुँ नहिं पावहिं । राम राम कहि चहुँ दिसि धावहिं ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) राखौं नहिं काहू सब मारौं । ब्रज गोकुल को खोज निवारौं ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पाना ।—लगाना । मुहा॰—खोज मिटाना = नष्ट करना । ध्वस्त करना । बरबाद करना । चिह्न तक न रहने देना ।
३. गाड़ी के पहिए की लीक अथवा पैर आदि का चिह्न । उ॰— चंदन माँझ कुरंभिन खोजू । ओहि को पाव को राजा भोजू । जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—खोज मारना = लीक या पैर आदि का चिह्न इस प्रकार बचाना या नष्ट करना जिसमें कोई पता न लगा सके । उ॰—खोज मारि रथ हाकहु ताता । आन उपाय बनहिं नहिं बाता ।—तुलसी (शब्द॰) ।
खोज ।
६. कस्तुरी का नाफा ।
१०. ज्योतिष में शुक्र की नी वीथियों में से आठवीं बीथी जो अनुराधा, ज्योष्ठा और मुल में पड़ती है ।
११. पुरुष के चार भेदों में से एक । विशेष—मृग जाति का पुरुष मधुरभाषी, बड़ी आँखोंवाला, भीरु चपल, सुंदर और तेज चलनेवाला होता है । यह चित्रिणी स्त्री के लिये उपयुक्त कहा गया है ।
१२. वैष्णवों के तिलक का एक भेद ।
१३. चंद्रमा का लांछन । चंद्रमा में मृग का चिह्न (को॰) ।