बहुत
क्रिया-विशेषन
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
बहुत प्रसन्न होना । प्रफुल्लित होना । आनंद और उमंग से फूलना । उ॰—बायस गहगहात शुभवाणी विमल पूर्व दिशि बोले । आजु मिलाओं श्याम मनोहर तू सुनु सखी राधिके भोले ।—सूर (शब्द॰) ।
२. फसल आदि का बहुत अच्छी तरह तैयार होना । खेती लहलहाना ।
बहुत काफी । उ॰—मेरे सदृश विद्वान् की परीक्षा बस होगी ।—सरस्वती (शव्द॰) । मुहा॰—बस करो । या बस । ठहरो । रुको । इतना बहुत है, और अधिक नहीं । उ॰—बलराम जी, बस करो, वस करो, अधिक बड़ाई उग्रसेन की मत करो ।—लल्लू (शब्द॰) ।
बहुत ^१ वि॰ [सं॰ बहुतर; अथवा सं॰ प्रभूत, प्रा॰ पहुत्त]
१. एक दो से अधिक । गिनती में ज्यादा । अनेक । जैसे,—वहाँ बहुत से आदमी गए ।
२. जो परिमाण में अल्प या न्यून न हो । जो मात्रा में अधिक हो । जैसे,—आज तुमने बहुत पानी पिया ।
३. आवश्यकता भर या उससे अधिक । यथेष्ट । बस । काफी । जैसे, अब मत दो, इतना बहुत है । मुहा॰—बहुत अच्छा = (१) स्वीकृतिसूचक वाक्य । एवमस्तु । ऐसा ही होगा । (२) धमकी का वाक्य । खैर ऐसी करो, हम देख लेंगे । कोई परवा नहीं । बहुत करके = (१) अधिकतर । ज्यादातर । बहुधा । प्रायः । अक्सर । अधिक अवसरों पर । जैसे,—बहुत करके वह शाम को ही आता है । (२) अधिक सभव है । बीस बिस्वे । जैसे,—बहुत करके तो वह वहाँ पहुँच गया होगा, न पहुँचा हो तो भेज देना । बहुत कुछ = कम नहीं । गिनती करने योग्य । जैसे,—अभी उनके पास बहुत कुछ धन है । बहुत खूब ! = (१) वाह ! क्या कहना है । (किसी अनोखी बात पर) । (२) बहुत अच्छा । बहुत है = कुछ नहीं है । (व्यंग्य) । बहुत हो जिए = रहने दो । जाव । चल दो । तुम्हारा काम नहीं ।
बहुत ^२ क्रि॰ वि॰ अधिक परिमाण में । ज्यादा । जैसे,—वह बहुत दौड़ा ।