जीवाणु
जीवाणु (बैक्टीरिया) | |
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ऐशेरिशिया कोलाई Escherichia coli | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
अधिजगत: | जीवाणु (Bacteria) वूज़, कैंडलर और व्हीलिस, 1990 |
संघ | |
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जीवाणु (Bacteria) सूक्ष्म जीव हैं जो प्रायः एककोशिकीय होते हैं। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं और प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। इनका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता हैं। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़ आदि के आकार की हो सकती हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय, गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में[1], जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं।
सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीवाणुओं की कुल संख्या अनुमानतः लगभग ५x१०३० होगी [2] जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है।[3] ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है।[4] जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है।
मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं।[5] हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा , मियादी बुखार, निमोनिया , तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि। केवल क्षय रोग से ही प्रतिवर्ष लगभग २० लाख लोग मरते हैं, जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं।[6]
विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जीवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र में जीवाणुओं की किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।[7]
पहले जीवाणुओं को पौधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण प्रोकैरियोट्स के रूप में होता है। दूसरे जन्तु कोशिकों तथा यूकैरियोट्स की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसित केन्द्रक का सर्वथा अभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग यदा कदा ही पाए जाते है। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण १९९० में हुई एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने हैं जिनका क्रम विकास एक ही पूर्वज से हुआ। इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं आर्किया कहा जाता है।[8]
इतिहास
जीवाणुओं को सबसे पहले १६७६ ई. में डच वैज्ञानिक एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक ने एकल लेंस वाले सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा था जिसे उसने स्वयं बनाया था। [9] परन्तु उस समय उसने इन्हें जंतुक (animalcule) समझा था। अपने अवलोकनों की पुष्टि के लिए उसने रायल सोसाइटी को कई पत्र लिखे।[10][11][12]
१६८३ ई. में ल्यूवेनहॉक ने जीवाणु का चित्रण कर अपने मत की पुष्टि की। १८६४ ई. में फ्रांसनिवासी लूई पाश्चर तथा १८९० ई. में कोच ने यह मत व्यक्त किया कि इन जीवाणुओं से रोग फैलते हैं।[13]
पाश्चर ने १९८९ में प्रयोगों द्वारा यह दिखाया कि किण्वन की रासायनिक क्रिया सूक्ष्म जीवों द्वारा होती है। कोच सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरूष माने जाते हैं, इन्होंने हैजा, ऐन्थ्रेक्स तथा क्षय रोगों पर गहन अध्ययन किया। अंततः कोच ने यह सिद्ध कर दिया कि कई रोग सूक्ष्म जीवों के कारण होते हैं। इसके लिए १९०५ ई. में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[14] कोच न रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं।[15]
१९वीं शताब्दी तक सभी जान गए थे कि जीवाणु कई रोगों के कारक हैं, फिर भी किसी प्रभावी प्रतिजैविक की खोज नहीं हो सकी।[16] सबसे पहले प्रतिजैविक का आविष्कार १९१० में पॉल एहरिच ने किया जिससे सिफलिस रोग की चिकित्सा सम्भव हो सकी।[17] इसके लिए १९०८ ई. में उन्हें चिकित्साशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्होंने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की कारगर विधियां खोज निकाली, जिनके आधार पर ग्राम स्टेन की रचना संभव हुई।[18]
उत्पत्ति एवं क्रमविकास
आधुनिक जीवाणुओं के पूर्वज वे एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव थे, जिनकी उत्पत्ति ४० करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीवन के आरम्भ के समय हुई। इसके बाद लगभग ३० करोड़ वर्ष तक पृथ्वी पर जीवन के नाम पर सूक्ष्मजीव ही थे। इनमें जीवाणु तथा आर्किया मुख्य थे।[19][20] स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे जीवाणुओं के जीवाश्म पाये गए हैं परन्तु इनकी अस्पष्ट बाह्य संरचना के कारण जीवाणुओं को समझने में इनसे कोई खास मदद नहीं मिली।
वर्गीकरण
जीवाणुओं का वर्गीकरण आकृति के अनुसार किया जाता है। उदाहरण-
1. दण्डाणु (बैसिलाइ) – दंड जैसे,
2. गोलाणु (कोक्काई)- बिन्दु जैसे,
3. सर्पिलाणु (स्पिरिलाइ) – लहरदार आदि।
मानव के विभिन्न अंगों को प्रभावित करने वाले जीवाणु
इन्हें भी देखें
- फफूंद (फंगस)
- विषाणु (वाइरस)
- सूक्ष्मजैविकी
- एककोशिकीय
- प्रोकैरियोटिक कोशिका
सन्दर्भ
- ↑ Fredrickson J, Zachara J, Balkwill D; एवं अन्य (2004). "Geomicrobiology of high-level nuclear waste-contaminated vadose sediments at the Hanford site, Washington state". Appl Environ Microbiol. 70 (7): 4230–41. PMID 15240306. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0099-2240. डीओआइ:10.1128/AEM.70.7.4230-4241.2004. मूल से 29 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितंबर 2008. Explicit use of et al. in:
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