Neelakshi Singh
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in Hajipur, India
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December 2023
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Neelakshi Singh
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Popular Answered Questions
जिनकी मुट्ठियों में सुराख था / Jinki Muthiyon Mein Surakh Tha
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KHELA
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Hukum Desh Ka Ikka Khota
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published
2023
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Ibtida Ke Aage Khaali Hi
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Jinki Mutthiyon Mein Surakh Tha
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published
2012
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परिंदे का इंतजार सा कुछ - Parinde Ka Intzaar Sa Kuchh
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जिसे जहां नहीं होना था
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published
2014
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Shuddhipatra
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published
2008
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Parinde Ka Intazar Sa Kuchh
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published
2005
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Baraf Mahal
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Neelakshi’s Recent Updates
Neelakshi Singh
is now friends with
Rocky
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Neelakshi Singh
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InSearchOfLostTime's
question:
No. It's not exactly like that. But I believe that ordinary things get recorded in the note pad of my mind. Then again, with the convenience of a diary, the mind can be careless in capturing the details of small incidences.
As far as remembering extr See Full Answer |
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Neelakshi Singh
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quote
“..वरा कुलकर्णी मोटे-मोटे सात छंदों वाले पद्य की तरह एक कमरे में दाखिल हो रही थी। हर एक छंद में इतने गझिन ढंग से ठूँस - ठूँस कर शब्द भरे थे कि नजरों के एक शब्द से दूसरे शब्द तक जाने के बीच कोई साँस नहीं बचती थी। इसलिए उसे पढ़ते हुए अक्सर साँसें अकुलाने लगती थीं। उसे गद्य करार दिया जा सकता था पर उसका बिना पूर्णविराम, कॉमा के सात टुकड़ों में समाप्त हो जाना उसे पद्य की तरफ खींच लेता था। नहीं यह भी नहीं। उसका बिल्कुल समझ में न आना उसे कविता बना रहा था।.”
Neelakshi Singh |
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Neelakshi Singh
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quote
“वह कैलेण्डर के बदलते पृष्ठों के बीच आखिरी दिन वाला पन्ना थी, संसार में जिसे फाड़े जाने का रिवाज नहीं था।”
Neelakshi Singh |
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"👍"
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"I heard about this book from a friend. Then read this book also. Reading this book was so fascinating that after that I searched and read all the books of the author and was amazed. It's a different world, a completely different level and range. High"
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"Must Read title"
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Neelakshi Singh
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“Language is like the thread that holds a composition. It is also to be kept in mind that whenever the plot or characters are in hold of the stirring, then it has to take back seat and hide itself, but when other things get a little slow in the whole journey, then the language has to emerge from the backstage for some time, so that the flavor remains there in the composition. In the whole process, sometimes the language becomes a bit complicated, taking different forms according to the situation. But a writer’s job is also to provoke the reader to go some extra miles in decoding the text.”
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“मैंने बाहर निकलते वक्त इस पर तफसीस से सोचा। मुझे लगा कि उसमें काफी गुंजाइश थी। कुछ गुंजाइश जो हमने छोड़ी थी अपनी हरकतों से और कुछ जो-जो होना चाहिए और जो हुआ ― के बीच के गैप से उत्पन्न हुई थी। अक्सर ऐसे मौके पर मैं यही सोचकर चुप हो जाता हूं कि जब मैं अपनी फ़िल्म बनाऊँगा तब ऐसे तमाम उलझे उपेक्षित मौके को पर्याप्त वक्त दूंगा। दरअसल यही मेरी जिंदगी का प्रस्थान- बिंदु था ― वह बिंदु जहां से मैं हर मुसीबत को ठेंगा दिखा दिया करता था। यह मोड़ मुझे कभी उदास होने ही नहीं देता और यही जिंदगी के प्रति आस्था का स्रोत भी था।”
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
“वह कैलेण्डर के बदलते पृष्ठों के बीच आखिरी दिन वाला पन्ना थी, संसार में जिसे फाड़े जाने का रिवाज नहीं था।”
― KHELA
― KHELA
“वह लड़का एक सादा पाठ था।
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।”
― KHELA
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।”
― KHELA
“Language is like the thread that holds a composition. It is also to be kept in mind that whenever the plot or characters are in hold of the stirring, then it has to take back seat and hide itself, but when other things get a little slow in the whole journey, then the language has to emerge from the backstage for some time, so that the flavor remains there in the composition. In the whole process, sometimes the language becomes a bit complicated, taking different forms according to the situation. But a writer’s job is also to provoke the reader to go some extra miles in decoding the text.”
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“उस लड़की के बहुत सारे साइड-इफेक्ट्स थे। कमरे के कोने में किसी कुर्सी की मुँडेर पर या अलगनी पर लटकता बासी कपड़ा जैसे पंखे की हवा में उड़ियाता है अपनी धुन में बेखबर कि किसी की नजर कभी जाएगी उस पर या नहीं, कुछ उसी तरह। वह दिमाग के एक कोने में उफनाना बदस्तूर जारी रखती―सामने होने या न होने पर भी। बल्कि न होने पर ज्यादा।”
― KHELA
― KHELA
“क्या प्रेम में पहले लकीरें खींच कर खेल के नियम तय कर लेना अनिवार्य है? .....
पहले भी हम अलग-अलग ही साथ रहे होंगे। वक्त की बही में कोई सम्मिलित ठेस या साझा छलाँग हमारे खाते में दर्ज नहीं हुई होगी।
सच है यहाँ भी रंग है बहुत। फूल का ढेर सा पीला रंग है, नारंगी आकाश और नीले पानी की नदी के बीच। इतने गहरे रंगों के बीच दुबले-पतले रंग का हमारा रिश्ता ठीक खड़ा नहीं हो पा रहा। जबकि रंग आपस में लड़ते हों ऐसा भी नहीं। फिर उसका इस तरह कँपकँपा लेना मुझे अस्थिर तो करता है। जब ऐसा है तो हम उसे खड़े होने के लिए या घुटनों के बल बैठ कर डगमग कदम बढाने के लिए या कमर के बल रेंग कर ही कोई करतब दिखाने के लिए मजबूर क्यों करें? उसे उसके ही हाल पर छोड़ देना चाहिए। क्या जाने हम किन्हीं गुमनाम रंगों का जोर देख पाने के गवाह ही बन जाएँ कभी।
किसी बीतते हुए को रोक लेने और जाने देने के बीच के फर्क का कायदा बस इतना सा ही तो है।”
― KHELA
पहले भी हम अलग-अलग ही साथ रहे होंगे। वक्त की बही में कोई सम्मिलित ठेस या साझा छलाँग हमारे खाते में दर्ज नहीं हुई होगी।
सच है यहाँ भी रंग है बहुत। फूल का ढेर सा पीला रंग है, नारंगी आकाश और नीले पानी की नदी के बीच। इतने गहरे रंगों के बीच दुबले-पतले रंग का हमारा रिश्ता ठीक खड़ा नहीं हो पा रहा। जबकि रंग आपस में लड़ते हों ऐसा भी नहीं। फिर उसका इस तरह कँपकँपा लेना मुझे अस्थिर तो करता है। जब ऐसा है तो हम उसे खड़े होने के लिए या घुटनों के बल बैठ कर डगमग कदम बढाने के लिए या कमर के बल रेंग कर ही कोई करतब दिखाने के लिए मजबूर क्यों करें? उसे उसके ही हाल पर छोड़ देना चाहिए। क्या जाने हम किन्हीं गुमनाम रंगों का जोर देख पाने के गवाह ही बन जाएँ कभी।
किसी बीतते हुए को रोक लेने और जाने देने के बीच के फर्क का कायदा बस इतना सा ही तो है।”
― KHELA
“मेरा दर्द उनकी दवा, जैसा। मैं इस दर्द को सहेजकर रख लूँगा और जब कभी अपने को प्रताड़ित करने का मौका होगा मैं उनके कहे एक-एक शब्द को याद कर इतना प्रताड़ित होऊँगा कि दर्द तक उधार लेने पड़ जाएँ।”
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra